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शबरी के जूठे बेर खाकर श्रीराम ने दिया समरसता का संदेश


मीरजापुर, 03 अक्टूबर (हि.स.)। रंगारंग राघवेंद्र रामलीला समिति पड़री में चल रही रामलीला के सातवें दिन रविवार को रामलीला के दौरान सीता के तलाश में जा रहे श्रीराम व लक्ष्मण जब सबरी के द्वार पर पहुंचते हैं तो सबरी खुशी से फूली नहीं समाती। श्रीराम ने शबरी की भक्ति से प्रभावित होकर शबरी के जूठे बेर खाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया।

शबरी की भक्ति ही थी कि भीलनी जाति की होने के बावजूद श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाए, वहीं लक्ष्मण बेर गिरा देते हैं। सबरी कहती है कि भगवान में भक्ति तो करती हूं, लेकिन भक्ति कैसे की जाती है, यह मुझे मालूम नहीं। तब श्रीराम ने नवधा भक्ति का उपदेश दिया। श्रीराम कहते है कि पहली भक्ति संतों की सत्संग है। दूसरी भक्ति ध्यान से सुना। तीसरी भक्ति गुरुओं के चरणों की सेवा। चौथी भक्ति कपट त्यागकर गुणगान करें। पांचवीं भक्ति भगवान में विश्वास कर मंत्रों का जाप करें। छठी भक्ति इन्द्री का दमन कर धर्म रूपी मार्ग पर चलें। सातवीं भक्ति जो कुछ मिले उसी में संतोष करें। पराए धन की लालसा सपने में भी ना सोचें। आठवीं भक्ति में संतों को मुझसे बढ़कर देखें व नौवीं भक्ति सब छलों से रहित सरल स्वभाव से रहें। न दुख मानें न सुख मानें। इन नौ भक्ति में से जो कोई भी एक भक्ति को पूर्ण रूप से करता है, वह मुझे सबसे प्रिय है। लीला के दौरान श्रीहनुमान का प्रकट होना और सुग्रीव-बाली दोनों भाइयों में द्वंद्व युद्ध आकर्षण का केंद्र रहा।