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भारत को आशा भरी निगाह से देख रहा है विश्व : दत्तात्रेय होसबाले


रांची, 28 सितम्बर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा है कि विश्व भारत को आशा भरी निगाहों से देख रहा है। हमें ऐसा भारत बनना है जो विश्व के श्रेष्ठ राष्ट्रों में से एक हो। हमें अपनी शक्ति को पहचानते हुए काम करना है। हम कोरोना काल में विश्व को अपनी शक्ति की पहचान करा चुके हैं। संकट में घिरे श्रीलंका की मदद कर मानवता का परिचय दे चुके हैं। यूक्रेन में युद्ध के दौरान भारत के साथ-साथ दूसरे देशों के लोगों को भी निकालने में मदद कर चुके हैं।

होसबाले बुधवार को रांची महानगर के एकत्रीकरण में स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। झमाझम बारिश के बावजूद कार्यक्रम पूर्व निर्धारित समय पर शुरू हुआ। उन्होंने कहा कि भारत को आगे ले जाने के लिए गुलामी की मानसिकता को छोड़कर स्वदेशी भाव को आगे बढ़ाने के लिए काम करना होगा। स्थानीय भाषा और स्थानीय उत्पादों को अपनाना होगा। उन्होंने कहा कि अभी नवरात्रि का उत्सव चल रहा है। इसी नवरात्रि के समापन यानी विजयादशमी को वर्ष 1925 में परम पूज्य डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना नागपुर में की थी। तीन वर्ष बाद संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे करने को जा रहा है।

उन्होंने कहा कि हम सब राष्ट्र के लिए कुछ करें। प्रकृति की परीक्षा संघ के जीवन में कोई नई बात नहीं है। सब प्रकार की चुनौतियों और संकट का सामना करते हुए संघ आजतक समाज और राष्ट्र की सेवा करता आया है। हम ईश्वर से प्रतिदिन प्रार्थना के माध्यम से पांच कृपा का निवेदन करते हैं। देश का कार्य करने के लिए हम कटिबद्ध हैं। इसलिए हमें अजेय शक्ति,सच्चा ज्ञान,ध्येय निष्ठा तथा वीरव्रत का आशीर्वाद हमें दें। यह जो समाज संगठन का कार्य है। कांटों से भरा मार्ग है। इस मार्ग की विभीषिका से हम परिचित हैं। फिर भी हमने स्वयं की प्रेरणा से अभिभूत होकर यह कार्य को करने का उत्तरदायित्व अपने कंधों पर लिया है। इस कार्य को करने के लिए हमें किसी भी प्रकार के लोभ कीअभिलाषा नहीं है।

उन्होंने कहा कि देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर अमृत काल मे प्रवेश कर चुका है। इन बीते 75 वर्ष में अपना समाज अब व्यक्तिगत हो चुका है। सामूहिक रूप से व्यापक चिंतन करने लगा है। स्वतंत्रता की यह प्राप्ति हमारे दीर्घकालीन संघर्ष और हमारे पूर्वजों के बलिदान का विराट स्वरूप है। युवकों ने हंसते हुए फांसी के फंदे को स्वीकार किया। समाज के सभी लोगों ने स्वतंत्रता के इस यज्ञ में अपनी आहुति स्वप्रेरणा से दी। ऐसे वातावरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई। डॉ. हेडगेवार ने इस स्वतंत्रता आंदोलन में दो बार देश की मुक्ति के लिए लड़ते हुए जेल की यातना को गले लगाया। उस समय सैकड़ों स्वयंसेवकों ने भी अपना सर्वस्व समर्पण कर भारत माता की मुक्ति में अपना योगदान दिया।

सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि संघ ने 1947 में प्राप्त आजादी के बाद अपना कार्य पूरा हो गया, ऐसा नही माना। अतीत के प्रति गौरव,वर्तमान की चिंता और भविष्य की आकांक्षाओं को लेकर कार्य को आगे बढ़ाया। भारत ने कभी किसी देश को गुलाम करने के लिए नहीं बल्कि सद्भाव के लिए, ज्ञान के लिए,योग के लिए,शिक्षा के लिए ही दूसरे देशों में अपना प्रतिनिधि भेजा है। आज भी भारत के लाखों लोग दुनिया के अनेक देशों में रहते है। वहां भी ये लोग उस देश के नियमानुकूल रहकर उसे देश के विकास में जो योगदान दे रहे हैं, वह अद्वितीय है। देश का संचालन करने वाले लोगों के पीछे जब समाज खड़ा होता है तो इसका दीर्घकालीन परिणाम दिखता है। संघ शाश्वत रहे ऐसी अपनी कल्पना नहीं किन्तु अपना हिन्दू राष्ट्र शाश्वत हो और इस शाश्वत राष्ट्र के लिए हर पीढ़ी को एक कीमत चुकानी पड़ती है और इसी कीमत को चुकाने के लिए संघ खड़ा है। इस मौके पर क्षेत्र संघचालक देवव्रत पाहन, महानगर संघचालक पवन मंत्री,पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी, विधायक सीपी सिंह, नवीन जयसवाल प्रमुख रूप से मौजूद रहे।