Wed. Sep 27th, 2023

बॉलीवुड के अनकहे किस्से) दिलीप कुमार और मनोज कुमार : एक रिश्ता जो सिनेमा हॉल के अंधेरे में बना


अजय कुमार शर्मा

मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार अभिनय के मामले में दिलीप कुमार को अपना गुरु मानते थे। उन्हें अपने को दिलीप कुमार का शिष्य कहलाने में बेहद खुशी होती थी। वे दिलीप साहब को अपने माता-पिता के बराबर का दर्ज़ा देते थे। दोनों के बीच आत्मीय संबंध बनने का किस्सा बहुत ही रोचक है। उन दोनों की पहली मुलाकात तब हुई जब मनोज कुमार अपने एक्टिंग करियर के लिए संघर्ष कर रहे थे और उनके पास पहनने के लिए एक दो कमीज़ और एक जोड़ी चप्पल थी क्योंकि महंगे जूते खरीदना संभव नहीं था। एक अंग्रेज़ी फिल्म द स्टोरी ऑन पेज वन के विशेष शो पर उन्हें फिल्मफेयर पत्रिका के संपादक के सहयोग से जाने का मौका मिला। अपने बुरे हुलिए के कारण मनोज कुमार फिल्म शुरू हो जाने के बाद देर से पहुंचे और सीट की तलाश में अंधेरे में हाथ चलाने लगे कि तभी किसी ने उनका हाथ पकड़कर अपने पास की खाली सीट पर बैठा लिया। कुछ देर बाद जब उन्होंने नजर घुमाकर देखा तो उनके पास बैठा शख्स कोई और नहीं दिलीप कुमार थे और अंधेरे में भी उनको देखकर मुस्कुरा रहे थे। थोड़ी देर बाद ही उनकी बहन फरीदा जो शायद उसी सीट पर बैठी थीं अंधेरे में अपनी सीट ढूंढती हुई वहां आईं… तब दिलीप कुमार ने उनसे कुछ कहा और वह पीछे कहीं और किसी सीट पर जाकर बैठ गई। फिल्म में रीटा हेवर्थ थीं और जैसे-जैसे फिल्म की कहानी बढ़ती गई दिलीप कुमार और मनोज कुमार के बीच बातों का सिलसिला ऐसे चल निकला मानों वे दोनों एक दूसरे को वर्षों से जानते हों। फिल्म जब समाप्त हुई तो दिलीप साहब ने उनको अगली सुबह अपने बंगले पर नाश्ते के लिए बुलाया। कल्पना की जा सकती है कि एक सुपरस्टार द्वारा एक नए संघर्षरत अभिनेता को अपने घर नाश्ते पर बुलाए जाने पर मनोज कुमार का क्या हाल हुआ होगा…। अगली सुबह जब मनोज कुमार वहां गए तो उन्होंने बहुत सम्मान के साथ नाश्ता तो कराया ही उनकी पृष्ठभूमि के बारे में पूछा और अपने पूरे परिवार से भी उनकी मुलाकात कराई। बातचीत और आंतरिक हो गई जब दिलीप साहब को पता चला कि मनोज कुमार का भी परिवार पाकिस्तान से आया हुआ था। उस समय दिलीप कुमार गंगा जमुना फिल्म का निर्माण कर रहे थे और बहुत व्यस्त थे, फिर भी उन्होंने उनसे कहा कि आप जब भी चाहें मुझसे बात कर सकते हैं और मेरे घर आ सकते हैं।

अगली बार वे उनसे मिलने तब गए जब हीरो के रूप में उनकी फिल्म कांच की गुड़िया का प्रीमियम होने वाला था और वे चाहते थे कि वे उसमें रहें, लेकिन उनके सामने ही उन्होंने वह समय किसी और को दे दिया था। मनोज कुमार उदास हो गए। जब दिलीप साहब को उनकी उदासी का कारण पता चला तो उन्होंने तुरंत अपने भाई अहसान से किसी को फोन कराकर उस दिन का कार्यक्रम कैंसिल कर दिया और उनका कंधा थपथपाते हुए कहा कि मैं उस दिन तुम्हारे साथ रहूंगा। कहने की जरूरत नहीं कि उनके आने से प्रीमियम में चार चांद लग गए।

लगभग 10 साल के बाद दोनों ने एक साथ फिल्म आदमी (1968) में काम किया। वैसे तो फिल्म के निर्देशक भीमसिंह थे मगर फिल्म को असल रूप में दिलीप साहब ही निर्देशित कर रहे थे। फिल्म की शूटिंग दक्षिण भारत के कोयंबटूर में हुई थी। उस फिल्म में दिलीप कुमार के पात्र का नाम राजा साहब था। तब से मनोज कुमार उनको राजा साहब के नाम से ही संबोधित करते रहे। क्रांति (1981) फिल्म में मनोज कुमार ने दिलीप साहब को लिया था। सब जानते हैं कि दिलीप साहब स्क्रिप्ट के मामले में बहुत चूज़ी थे, लेकिन इस फिल्म के लिए उन्होंने मात्र 15 मिनट की कहानी सुनकर ही मनोज कुमार को कहा था कि जमीन उपजाऊ है और इसका मतलब तुरंत उनकी हां मानकर मनोज कुमार फिल्म के अन्य कामों में लग गए थे।

चलते चलतेः दिलीप साहब की पत्नी सायरा बानो को मनोज कुमार ने अपनी फिल्म पूरब और पश्चिम में लिया था। फिल्म की शूटिंग लंदन में होनी थी और यूनिट भी वहां पहुंच चुकी थी कि पेट में अल्सर की वजह से सायरा को लंदन के एक अस्पताल में भर्ती करना पड़ा जहां एक महीने तक उनका इलाज़ चला। तब दिलीप कुमार ने उनसे खुद कहा था कि वह चाहे तो फिल्म में किसी और को ले सकते हैं, लेकिन मनोज कुमार ने उनसे कहा कि यह रोल सायरा के लिए ही लिखा गया है। अगर वे यह रोल नहीं करेंगी तो वे यह फिल्म ही बंद कर देंगे। मनोज कुमार ने उनके ठीक होने का इंतजार किया और फिर शूटिंग की। दिलीप कुमार ने उनका यह कर्ज़ क्रांति फिल्म करके उतारा।

(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)