
पंडित राजेन्द्र प्रसन्ना द्वारा बांसुरी पर वंदे मातरम की धुन छेड़ते ही झूम उठे बच्चे

बेगूसराय, 10 सितम्बर (हि.स.)। दुनिया के सबसे बेहतरीन भारतीय शास्त्रीय संगीत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए स्पीक मैके लगातार बच्चों और युवाओं के बीच कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। एक बार फिर भारद्वाज गुरुकुल के सभागार में पंडित राजेन्द्र प्रसन्ना ने जब अपने बांसुरी से वंदे मातरम की धुन बिखेरी को ना केवल सभागार में उपस्थित सैकड़ों बच्चे, बल्कि उपस्थित अभिभावक और बुद्धिजीवी भी मां भारती के इस प्रिय गान की धुन पर चहक उठे।
बांसुरी वादक राजेन्द्र प्रसन्ना के साथ तबला पर संगत कर रहे थे अभिषेक मिश्रा। राजेन्द्र प्रसन्ना और अभिषेक मिश्रा की जोड़ी ने ना केवल वंदे मातरम की धुन बिखेरी, बल्कि रघुपति राघव राजा राम गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत कलाकारों के परिचय बाद दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। इसके बाद दोपहर में गाए जाने वाले राग वृन्दावनी सारंग से संगीत की शुरुआत हुई। अलाप के बाद मध्य लय तीन ताल एवं द्रुत तीन ताल का परिचय कराया गया।
सावन के मौसम में गाए जाने वाले कजरी की प्रस्तुति भी की गई। प्रसिद्ध भजन रघुपति राघव राजा राम को बच्चों ने साथ-साथ गाया। वैष्णव जन तेने कहिए के धुन को भी बहुत पसंद किया गया तो श्रोता के आग्रह पर वंदे मातरम का भी धुन बजाया गया। राम धुनि में तो बच्चों ने कोरस की भूमिका निभाई। कार्यक्रम के दौरान एक ओर संगीत और शोर के फर्क को खुद से समझने का मौका मिला। दूसरी ओर सबों ने जाना कि पाश्चात्य संस्कृति और डीजे कल्चर ने भारतीय संगीत विधा का सबसे ज्यादा नुकसान किया है। इससे मन शांत नहीं होकर बेचैन हो जाता है और दैत्य प्रवृति जागृत हो जाता है।
भारतीय संगीत के विलुप्त होने के बाद पछताने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। संगीत के विलुप्त होते ही मानसिक रोगियों की फौज खड़ी हो जाएगी, इसकी शुरुआत हो चुकी है। आत्महत्या और मानसिक बीमारों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। अभी समझ में आ गया कि बड़े-बड़े मेडिकल कॉलेज के छात्र भी हर वर्ष आत्महत्या क्यों कर रहे हैं। हमारे पूर्वजों ने रास्ता दिखाया था, लेकिन हम भटक गए हैं। अब तानसेन बनना मुश्किल है, लेकिन अच्छे संगीत को सुनकर कानसेन बना जा सकता है।
इस अवसर पर राजेन्द्र प्रसन्ना ने कहा कि स्पीक मैके देश के हर बच्चे को यह जनाने की कोशिश कर रहा है कि हिंदुस्तानी म्यूजिक क्या है। आज हर ओर वेस्टर्न म्यूजिक की धूम मची हुई है, जबकि इंडियन म्यूजिक (भारतीय संगीत) कल भी पूरे विश्व में नंबर वन था और आज भी पूरे विश्व में नंबर वन पर है। आकाश से पाताल तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक इसका कोई जोर नहीं है।
शिव प्रकाश भारद्वाज ने कहा कि स्पीक मैके में देश के ए-कैटेगरी के आर्टिस्ट शामिल होते हैं और पूरे विश्व में भारतीय संगीत प्रतिभा का परचम लहराते हैं। आज बच्चे और अभिभावक समझते हैं कि डॉक्टर और इंजीनियर में ही कैरियर है। लेकिन यह सही नहीं है, इस सोच से बाहर निकलिए तो पूरे विश्व में सम्मान मिलेगा। भारतीय संगीत से दूर हो रही पीढ़ी को क्या अच्छा और क्या खराब है कहने से बेहतर है कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर के संगीत से परिचय करा दिया जाए तो नई पीढ़ी संगीत और शोर के बीच का फर्क समझ सकेंगे। मन को शांत रखने की विधा सीखकर बच्चे हर क्षेत्र में बेहतर कर सकते हैं। कलाकारों का सम्मान जनकवि दीनानाथ सुमित्र की रचना और अंग वस्त्र से किया गया।